The Gita – Chapter 15 – Shloka 04
The Gita – Chapter 15 – Shloka 04
Shloka 4
If a man finds and proceeds along this path of non-attachment, he can say that he has truly discovered the way by which he can attain peaceful refuge and shelter in the Eternal Spirit (the Great beginning of all things is form whom all creation has evolved (namely, LORD KRISHNA Himself).
उसके पश्चात् उस परम पद रूप परमेश्वर को भली भाँति खोजना चाहिये, जिसमें गये हुए पुरुष फिर लौट कर संसार में नहीं आते और जिस परमेश्वर से इस पुरातन संसार वृक्ष की प्रवृति विस्तार को प्राप्त हुई है, उसी आदि पुरुष नारायण के मैं शरण हूँ —-इस प्रकार द्ढ़ निश्चय करके उस परमेश्वर का मनन और निदिध्यासन करना चाहिये ।। ४ ।।