The Gita – Chapter 10 – Shloka 18
Shloka 18
The Gita – Chapter 10 – Shloka 18
Arjuna demanded further:
Lord Krishna, once again, describe fully to me, your divine glories and supreme splendour. My thirst for hearing your sweet and divine words again and again, is not yet quenched.
हे जनार्दन ! अपनी योग शक्त्ति को और विभूति को फिर भी विस्तार पूर्वक कहिये; क्योकि आपके अमृत मय वचनों को सुनते हुए मेरी तृप्ति नहीं होती अर्थात् सुनने की उत्कण्ठा बनी ही रहती है ।। १८ ।।