The Gita – Chapter 10 – Shloka 40
Shloka 40
The Gita – Chapter 10 – Shloka 40
There is no end of my divine qualities, Arjuna. What I have spoken here to thee shows only a small part of my infinity.
हे परंतप ! मेरी दिव्य विभूतियों का अन्त नहीं है, मैंने अपनी विभूतियों का विस्तार तो तेरे लिये एक देश से अर्थात् संक्षेप से कहा है ।। ४० ।।