The Gita – Chapter 10 – Shloka 42
Shloka 42
The Gita – Chapter 10 – Shloka 42
But of what help is it to you to know this diversity? Know that with one single fraction of My Being I pervade and support the Universe and know that I am.
अथवा हे अर्जुन ! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रयोजन है । मैं इस सम्पूर्ण जगत् को अपनी योग शक्त्ति के एक अंश मात्र से धारण करके स्थित हूँ ।। ४२ ।।