The Gita – Chapter 11 – Shloka 55
The Gita – Chapter 11 – Shloka 55
Shloka 55
He who truly loves Me; devotes his whole life to performing actions to please only Myself; who recognizes that I am the Supreme and final goal of life; who is free from all attachment and has love for all that I have created; that man comes to truly know who I am.
हे अर्जुन ! जो पुरुष केवल मेरे ही लिये सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों को करने वाला हैं, मेरे परायण है, मेरा भक्त्त हैं, आसक्तिरहित है और सम्पूर्ण भूत प्राणियों में वैर भाव से रहित है वह अनन्य भक्ति युक्त पुरुष मुझको ही प्राप्त होता हैं ।। ५५ ।।