The Gita – Chapter 12 – Shloka 15
The Gita – Chapter 12 – Shloka 15
Shloka 15
He who does not harm anyone in the world and from whom the world is not agitated, and he who knows no joy, envy, fear and anxiety, that devotee is dear to me.
जिससे कोई भी जीव उद्वेग को प्राप्त नहीं होता और जो स्वयं भी किसी उद्बेग को प्राप्त नहीं होता, तथा जो हर्ष, अमर्ष, भय और उद्वेगादि से रहित हैं वह भक्त मुझ को प्रिय हैं ।। १५ ।।