The Gita – Chapter 14 – Shloka 23
The Gita – Chapter 14 – Shloka 23
Shloka 23
The Lord further explained:
…He who sits apart undisturbed and unaffected by varying conditions of the environment and observes the world around him knowing and fully understanding that it is the power of nature that acts on all beings in this world…
जो साक्षी के सदृश स्थित हुआ गुणों के द्वारा विचलित नहीं किया जा सकता और गुण ही गुणों में बरतते है —-ऐसा समझता हुआ जो सच्चिदानन्दधन परमात्मा में एकीभाव से स्थिर रहता है एवं उस स्थिति से कभी विचलित नहीं होता ।। २३ ।।