The Gita – Chapter 2 – Shloka 42
The Gita – Chapter 2 – Shloka 42
Shloka 42
O ARJUNA, unwise people who think of nothing but material desires and pleasures, and who believe in the Vedas as well, think that heaven means the absolute end of oneself.
हे अर्जुन ! जो भोगों में तन्मय हो रहे हैं, जो कर्मफल के प्रशंसक वेदवाक्यों में ही प्रीति रखते हैं, जिनकी बुद्भि में स्वर्ग ही परम प्राप्य वस्तु है और जो स्वर्ग से बढ़कर दूसरी कोई वस्तु ही नहीं है —– ऐसा कहने वाले हैं, वे अविवेकजन इस प्रकार की ।। ४२ ।।